हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि एक अपराध के लिए कर्मचारी को दो दंड न्याय के सिद्घांत के खिलाफ है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने यह फैसला लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ हरियाणा रोडवेज कर्मचारी की याचिका मंजूर करते हुए जारी किया है।

करनाल निवासी घनश्याम ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए बताया था कि वह हरियाणा रोडवेज करनाल डिपो में कंडक्टर था। आठ जुलाई 1980 को उस पर आरोप लगा कि उसने हरिद्वार जा रहे चार चात्रियों को 62 रुपये कीमत के टिकट जारी नहीं किए। इसके लिए उसे ड्यूटी के दौरान कदाचार का आरोपी बनाया गया।

इस चूक के कारण राज्य को हुए राजस्व नुकसान के आधार पर उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। जिसके बाद मामला लेबर कोर्ट को भेजा गया। लेबर कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि इस कदाचार के लिए बर्खास्तगी उचित नहीं है।

ऐसे में उसकी बर्खास्तगी का आदेश रद्द करते हुए सेवा समाप्त करने की तिथि से लेकर बहाली तक के वेतन से इन्कार कर दिया। इस दौरान मिलने वाले इंक्रीमेंट से भी उसे वंचित कर दिया गया। बर्खास्तगी के दौरान की अवधि को बहाली न मान कर निलंबन मानने का आदेश दिया गया।

यह कहा हाईकोर्ट ने
लेबर कोर्ट ने उसकी वेतन वृद्धि रोक दी और सेवा से उसके बर्खास्तगी से लेकर बहाली तक की अवधि को निलंबन अवधि के रूप में माना। हाईकोर्ट ने कहा कि इस प्रकार का आदेश सीधे तौर पर न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने रोडवेज को आदेश दिया कि वह सेवा समाप्ति की तिथि से लेकर बहाल होने तक की अनुपस्थिति अवधि को छुट्टी के रूप में मानें। हालांकि इसके लिए कर्मी को कोई भुगतान न किया जाए। उसे इंक्रीमेंट से वंचित नहीं किया जा सकता।

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